यहाँ खेती किसान में आज हम जानेंगे safed musli ki kheti कैसे की जाती है , सफेद मूसली की खेती के क्या फायदे हैं, सफेद मूसली के औषधिए गुण क्या है ?
Safed Musli ki Kheti : सफ़ेद मूसली की खेती करने की जानकारी
- क्या होती है सफ़ेद मूसली
- सफ़ेद मूसली की खेती में खाद का प्रयोग
- सफ़ेद मूसली के लिए उपयुकत जलवायु
- सफ़ेद मूसली का औषधीय प्रयोग
- सफ़ेद मूसली को लगाने का समय
- सफ़ेद मूसली की बिजाइ कैसे की जाती है
- मूसली की फसल में होने वाली बीमारिया व कीटनाशक प्रयोग
क्या होती है सफ़ेद मूसली ? What is Safed Musli ?
Safed Musli को अंगेजी में Chlorophytum borivilianum (क्लोरोफायटम बोरीविलीयेनम) कहा जाता है जो की प्रायद्वीपीय भारत में उष्णकटीबंधीय गीले जंगलो में प्राकर्तिक पाये जाने वाली एक जड़ी बूटी है । इसे भारत के कुछ हिस्सो में एक पत्ती की सब्जी के रूप में खाया जाता है और इसकी जड़ो को भारतीय चिकित्सा में स्वास्थ्य टॉनिक के रूप में प्रयोग किया जाता है ।
Image : Safed Musli ki Kheti ki jankari by KhetiKisaan |
सफ़ेद मूसली एक ऐसी जड़ी-बूटी है जो शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए काफी मशहूर है , हालांकि इसके गुणो को लेकर कोई वेज्ञानिक साक्ष्य मौजूद नहीं है ।
खेती (Kheti) करते वक्त सफ़ेद मूसली (Safed Musli) को लगाने का समय
सफ़ेद मूसली की खेती बरसात के मौसम मे की जाती है , मूसली को बरसात में लगाया जाता है । सफ़ेद मूसली आठ नौ महीने की फसल है जिसे मॉनसून में लगाकर फरवरी मार्च में खोद लिया जाता है । अछि खेती के लिए यह ध्यान में रखना चाहिए की मूसली की जुताई गहरी की जाये और अगर हो सके तो हरी खाद के लिए ढेंचा या ग्वारफली बो दें , और जब पोधो में फूल आने लगे तो काटकर खेत में डालकर मिला दें ।
नियमित वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नही होती , अनियमित वर्षा पर 10-12 दिन में एक पानी दें और अक्तूबर महीने के बाद 20-21 डीनो पर हाली सिंचाई करते रहना चाहिए , मूसली उखाड़ने के पूर्व तक जमीन में नमी बनाए रखें लेकिन ये ध्यान रखें के पानी ना भरा रहे खेत में क्यूंकी पानी के भराव से फंगस आने का व जड़ गलन का डर रहता है ।
पानी व खाद कैसे दिया जाये सफ़ेद मूसली की खेती में
इस फसल की बुआई जून-जुलाई माह के 1-2 सप्ताह में की जाती है, जिसका कारण इन महीनों में प्राकृतिक वर्षा होती है अत: सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु वर्षा के उपरांत प्रत्येक 10 दिनों के अंतराल पर पानी देना उपयुक्त होता है। सिंचाई हल्की एवं छिड़काव विधि हो तो अति उत्तम है। किसी भी परिस्थिति में खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए।
खाद के लिए 30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर दें। रासायनिक खाद न डालें तो अच्छा है परन्तु कंद वाली फसलों के लिए हड्डी की खाद 60 किलो/हेक्टेयर उपयुक्त होती है। मिट्टी में सॉयल कंडीसनर (माइसिमिल) डालना लाभप्रद होता है। यह दवा हिन्दुस्तान एंटी बाएटीक कम्पनी बनाती है।
सफ़ेद मूसली में आने वाली बीमारियां व कीटनाशक का उपयोग
सफेद मुसली की फसल में कोई विशेष बीमारी नहीं लगती है अतः किसी प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है । जमीन के गिलेपन के कार्न कई बार फंगस आ जाता है जिसे दूर करने के लिए कोई भी अच्छा फंगीसाइड जैसे M-45 प्रयोग में लेना चाहिए , और यदि कोई कीट देखा जाये तो मोनोक्रोटोफोस की हल्की स्प्रे करें ।
मूसली के कंद की खुदाई
बुवाई के लगभग 80 से 90 दिन बाद पत्ते सूखने लगते हैं। पत्ते सूख जाने पर 1 से 2 माह तक कंदों को जमीन में ही रहने देते हैं। पानी का हल्का छिड़काव किया जाता है। पकने पर रंग हरा भरा हो जाने पर कुदाल से कंधों को निकाला जाता है।
सफ़ेद मूसली की उपज कितनी होती है
एक पौधे से लगभग 10 से 12 कंद प्राप्त होते हैं व उसकी मात्रा 10 ग्राम प्रति कंद होती है। बीज वाले कंधों को अलग रखकर शेष की छिलाई करना आवश्यक होता है। छिलका उतारने से यह अच्छी तरह सूख जाती है। अच्छी मूसली सूखने पर पूर्णत सफेद होती है। इस प्रकार एक हेक्टर में लगभग 10 क्विंटल सुखी सफेद मुसली प्राप्त होती है।
सफेद मुसली से शुद्ध आय क्या हो सकती है (अनुमानित)
सूखी हुई सफेद मुसली 9 से 12 सो रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। इस प्रकार एक हेक्टर में शुद्ध लाभ लगभग 7 से 8 लाख रूपये प्राप्त होता है।
सफ़ेद मूसली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
सफ़ेद मसूली एक कंदरूपी पौधा है जो कि छत्तीसगढ़ व अन्य प्रदेशों के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगता है। यह समशीतोष्ण जलवायु वाले वन क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। इसको 800 से 1500 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा पर आधारित फसल के रूप उगाया जा सकता है। इसे छितरी छाया अधिक नमी वाली उर्वरा भूमि की आवश्यकता होती है। सफ़ेद मसूली की फसल को तेज धूप व तेज हवाओं से सुरक्षित करना आवश्यक होता है ।
उपयुक्त बीज और बुआई
सफेद मसूली का प्रवर्धन (प्रसारण) इसके घनकन्दों द्वारा होता है। इसकी डिस्क या अक्ष में जो कलियाँ होती हैं उन्ही को बीज के रूप में उपयोग करते हैं। पूर्व की फसल से निकाले गये कंदों का उपयोग भी किया जा सकता है। बीज के लिए फिंगर्स (ट्यूर्बस) का उपयोग करते हुए यह बात अवश्य ध्यान में रखे कि फिंगर्स के साथ पौधे की डिस्क का कुछ भाग अवश्य साथ में लगा रहे तथा फिंगर (ट्यूबर) का छिलका भी क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए अन्यथा पौधे के उगने में कठिनाई होगी। अच्छी फसल लेने के लिए ट्यूबर (फिंगर) का वजन 5-10 ग्राम होना चाहिए। अच्छी फसल के लिए उत्तम गुणवत्ता वाला प्रामाणिक बीज किसी विश्वसनीय संस्थान से लेना चाहिए। एक हेक्टेयर के लिए लगभग 2 लाख (लगभग 10-15 क्विण्टल) बीज (क्राउनयुक्त फिंगर्स) पर्याप्त रहता है। इतना अधिक बीज (फिंगर्स) एक बार खरीदने में अधिक खर्च आता है। अतः प्रथम बार केवल 1/4 एकड़ अथवा 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में रोपाई की जा सकती है। इससे लगभग 6 क्विंटल नये पौधे तैयार हो जाते हैं जिन्हें आगामी वर्ष रोपने हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।
रोपाई करने की विधी
सफेद मसूली के बीज (फिंगर्स) को 20 सेमी. कतारों -से-कतारों की दूरी पर तथा बीज-से-बीज 15 सेमी. की दूरी पर लगाना आवश्यक है। ध्यान रहे कि रोपने की गहराई उतनी ही हो जितनी मूल की लंबाई हो जो अक्ष का भाग मूल से संलग्र रहता है। वह भूमि की ऊपरी सतह के बराबर हो उसको मृदा से ढँकना नहीं चाहिये। केवल मूल ही मृदा के अंदर रहे। लगाते समय क्यारी में कुदाली से 5-6 सेमी. गहरी लाइनें 20 सेमी. के अंतर से बना ले। मूल या पूरी डिस्क लगाने के बाद उसके चारों तरफ मिट्टी भरकर दबा देना चाहिए। ध्यान रहे फिंगर पूरी तरह मिट्टी के अंदर न हो उसकी प्रसुप्त कलिकायें भूमि की सतह पर होना चाहिए।
सफ़ेद मूसली के औषधीय गुण : Medicinal use of Safed Musli
- सालों से विभिन्न दवाइयो के निर्माण में भी सफेद मूसली का उपयोग किया जाता है। मूलतः यह एक ऐसी जडी-बूटी है जिससे किसी भी प्रकार की शारीरिक शिथिलता को दूर करने की क्षमता होती है। यही कारण है की कोई भी आयुर्वेदिक सत्व जैसे च्यवनप्राश आदि इसके बिना संम्पूर्ण नहीं माने जाते हैं।
- आयुर्वेद में सफेद मूसली को सौ से अधिक दवाओ के निर्माण में उपयोग के कारण दिव्य औषधि के नाम से जाना जाता है। यह एक सदाबहार शाकीय पौधा है। समशीतोष्ण क्षेत्र में यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। विश्व बाजार में इसकी बहुत मांग बढी हुई है जो 35000 टन तक प्रतिवर्ष आँकी गई है किन्तु इसकी उपलब्धता 5000 टन प्रतिवर्ष है।
- आयुर्वेद के अनुसार सफेद मूसली (safed musli) की जड़ें सबसे ज्यादा गुणकारी होती हैं। ये जड़ें विटामिन और खनिजों का भंडार हैं। सफेद मूसली की जड़ों के अलावा इनके बीजों का इस्तेमाल भी प्रमुखता से किया जाता है। इन जड़ों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, सैपोनिंस जैसे पोषक तत्व और कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम आदि खनिज प्रमुखता से पाए जाते हैं।सफेद मूसली की गांठ वाली जड़ें और बीजों का इस्तेमाल औषधि के रुप में सबसे ज्यादा किया जाता है।
- आमतौर पर सफेद मूसली का उपयोग सेक्स संबंधी समस्याओं के लिए अधिक होता है लेकिन इसके अलावा सफेद मूसली का इस्तेमाल आर्थराइटिस, कैंसर, मधुमेह (डायबिटीज),नपुंसकता आदि रोगों के इलाज में और शारीरिक कमजोरी दूर करने में भी प्रमुखता से किया जाता है। कमजोरी दूर करने की यह सबसे प्रचलित आयुर्वेदिक औषधि है। जानवरों पर किये एक शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं साथ ही यह सेक्स संबंधी गतिविधि को बढ़ाती है और टेस्टोस्टेरोन जैसे प्रभाव वाले सेक्स हार्मोन का स्तर बढ़ाती है।
- आप किसी से भी सफेद मूसली के फायदे (safed musli benefits) के बारे में बात करेंगे तो वो आपको झट से यही बतायेगा कि सफेद मूसली यौन शक्ति बढ़ाती है वहीं कुछ लोग तो इसका इस्तेमाल हर्बल वियाग्रा के तौर पर करते हैं। जानवरों पर किये एक शोध में पाया गया कि सफेद मूसली पाउडर (safed musli powder) में ऐसे गुण होते हैं जो कामोत्तेजना बढ़ाने के साथ साथ टेस्टोस्टेरोन जैसे प्रभाव वाले सेक्स हार्मोन का स्तर बढ़ा सकते हैं। इसलिए सेक्स क्षमता बढ़ाने के लिए सफ़ेद मूसली का उपयोग करना सही है।खुराक और सेवन की विधि : यौन शक्ति बढ़ाने के लिए आधा चम्मच मूसली पाउडर को गुनगुने दूध के साथ दिन में दो बार खाना खाने के बाद लें।
- सेक्स के दौरान लिंग में उत्तेजना या तनाव की कमी होना इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या कहलाती है। स्ट्रेस, डिप्रेशन या किसी दीर्घकालिक बीमारी की वजह से यह समस्या किसी को भी हो सकती है। सफेद मूसली सेक्स की इच्छा को बढ़ाती है साथ ही यह इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या को भी ठीक करने में मदद करती है। अक्सर डायबिटीज या अन्य किसी बीमारी के कारण इरेक्टाइल डिसफंक्शन का खतरा बढ़ जाता है ऐसे में सफ़ेद मूसली के सेवन से आप इस खतरे को प्रभावी तरीके से रोक सकते हैं।खुराक और सेवन की विधि : सफेद मूसली के कैप्सूल आज कल बाज़ार में आसानी से उपलब्ध हैं। 1-1 कैप्सूल सुबह शाम पानी या दूध के साथ सेवन करें।
- सफेद मूसली शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है जिससे सर्दी-जुकाम समेत कई तरह की संक्रामक बीमारियों से आपका बचाव होता है। अगर आप बार बार सर्दी-जुकाम या फ्लू के शिकार हो रहे हैं तो ऐसे में इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए सफेद मूसली का सेवन करें और स्वस्थ रहें।खुराक और सेवन की विधि : आधा चम्मच मूसली पाक को एक चम्मच शहद या एक गिलास दूध के साथ सुबह शाम लें।
- यह सच है कि सफेद मूसली (safed musli in hindi) शारीरिक शक्ति को बढ़ाती है और ताकत बढ़ाने वाली कोई भी आयुर्वेदिक औषधि शरीर के वजन को भी बढ़ाती है। यही कारण है कि सफेद मूसली का दूध के साथ सेवन आपके वजन को बढ़ा सकता है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यदि आप इसे गर्म पानी के साथ पियें तो यह वजन कम करने में मदद करती है। इसलिए अगर आप मोटापे या बढ़ते वजन से परेशान हैं तो गर्म पानी के साथ सफेद मूसली का सेवन करें।खुराक और सेवन की विधि : आधा चम्मच मूसली पाउडर को गर्म पानी के साथ वर्कआउट करने के कुछ देर बाद लें। ध्यान रखें कि अगर आप वजन घटाने के लिए सफेद मूसली का सेवन कर रहे हैं तो दूध के साथ इसके सेवन से परहेज करें क्योंकि उससे वजन बढ़ सकता है।
- उम्र बढ़ने के साथ साथ हड्डियों और जोड़ों में दर्द होना एक आम समस्या है। अपने देश में अधिकांश बुजुर्ग आर्थराइटिस की समस्या से पीड़ित रहते हैं। सफेद मूसली के सेवन से आर्थराइटिस में होने वाले जोड़ों के दर्द और सूजन से आराम मिलता है। खुराक और सेवन की विधि : आधा चम्मच मूसली पाउडर दूध या पानी के साथ दिन में दो बार खाने के बाद लें।
Note : ऊपर दी गयी जानकारी विभिन sources से जुटाई गयी है , सफेद मूसली का प्रयोग परामर्श के बिना ना करे , व खेती करने में कृषि प्रेव्क्ष्कोन की सहायता लेवें ।
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